Description
Dr. Vandana Mishra
डॉ वन्दना मिश्र का ‘गढ़ई भर चाय’ दूसरा कहानी संग्रह है, साहित्य जगत में वे एक परिचित हस्ताक्षर हैं। सतत् रचनाशीलता उनके रचनाकर्म में दिखाई देती है।
इस संग्रह की रचनाधर्मिता से गुजरते हुए एक ऐसे संसार से गुजरते हैं जहाँ यथार्थ हमारे आसपास घटित घटनाओं का- सा एहसास दिलाता है। यह एहसास उनके लेखन की गुणवत्ता, दीर्घकालीन लेखन, गहन अनुभूति व अध्ययनशीलता का परिचायक बन पड़ता है। इस संग्रह को पढ़ते हुए समय के साथ संघर्ष करते कई तरह के सवाल हमारे मानस पटल में उपजते हैं। यह सुखद है कि सभी कहानियों में भारतीय जीवन मूल्यों की अविरल धारा दिखाई देती है।यहाँ पर्यावरण की चिंता है तो घर-परिवार, रिश्ते-नाते सभी को बाँधे रखने की वाजिब चिंता भी है। बात-बात पर घटित घटनाओं पर आँतक फैलाते लोग आगजनी और लूटमार कर देश तोड़ने की कोशिश, तो सूखती नदियाँ,क्षरित होते पहाड़, प्रकृति जैसी भयावह स्थितियों , सामाजिक विसंगतियों, सच्चाई से यह कहानियाँ रू-ब-रू कराती हैं ।
कहानी संग्रह ‘गढ़ई भर चाय’ कई मायनों में महत्त्वपूर्ण है । गाँव में प्यार,आदर सब कुछ मिलता है, तो संबंधों के तिरस्कार का भयावह चित्रण भी है। यह जटिलतायें ही संवेदनशील मानव को सोचने व लेखन को उकसाती हैं।
संग्रह की कहानियों में कई पौराणिक संदर्भ हैं जो कथावस्तु में रस, उदात्त भारतीय जीवन मूल्य, स्वबोध स्वतः ले आते हैं। विषय वैविध्य,कथा शिल्प,भाषा कौशल संग्रह की कहानियों को विशिष्टता प्रदान करते हैं। इन कहानियों के पात्र समय के साथ संघर्ष करते हुए उलझते हैं ,जीवन जीने के लिए इस बाजारवादी, उपभोक्तावादी समय में अपने को साधे रहने की कोशिश करते जिजीविषा जगाते आशावान बनाते हैं। सारा वातावरण आसपास वितान-सा बनाता मानवीय सरोकार की उष्णता का अनुभव कराता है। आशा है इस पुस्तक का पाठक जगत स्वागत करेगा ।
इसी पुस्तक से तुम्हारे जैसे भाई हों तो देश की हर बहन सुरक्षित है। दोस्त शब्द में असमंजस, विश्वसनीयता, अपनापे ,हैरत का मिला जुला रूप एकदम आत्मीय हो श्रद्धा की गाढ़ी चासनी में लिपटा महसूस हुआ। लगा जैसे रिश्तों का सहज स्वागत करने मन आतुर है। घर,बाहर चौबारों पर जलता अलाव गाँव भर की ठंड को गाँव के बाहर धकिया देता था।
मैं अपना भाग्य खुद लिखूँगा।